हमारे ऑफिस में जब भी प्रधानमंत्री से जुड़ी कोई खबर आती है, तो तुरंत शिफट इंचार्ज से लेकर सारे लोग अलर्ट हो जाते हैं, हो भी क्यों न, सारे अखबारों से लेकर टीवी चैनल तक देख लें, ’बड़ी खबर’ की परिभाषा में सबसे पहले प्रधानमंत्री जी से जुड़ी खबर ही फिट बैठती है।
आज भी ऐसी ही एक खबर आई, प्रधानमंत्री जी से जुड़ी हुई। इंचार्ज मैडम का फौरन आदेश आया, हाथ की खबर छोड़ कर इसे देखो। मैं भी जुट गई अभियान में।
सरसरी निगाह से पूरी खबर को देखा, हैडिंग थी, लेह के बाढ़ पीड़ितों के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दिए 50,000 रुपये। पूरी पढ़ने के बाद मुझे लगा कि शयद जल्दबाजी में कहीं गलती हुई है, मैंने एक 0 कम पढ़ लिया है, दोबारा देखी, पर नहीं, मैंने सही देखा था, वो 50,000 ही था।
देख कर लगा प्रकृति की मार झेल रहे लोगों के साथ शायद प्रधानमंत्री जी भी मजाक कर रहे हैं। नहीं तो जिस देश में कॉमनवेल्थ गेम्स को देखते हुए दिल्ली के 1स्टेडियम के जीर्णोद्धार के लिए 1,000 करोड़ रुपये दिए जाते हैं, उस देश के प्रधानमंत्री इतनी बड़ी आपदा के शिकार लोगों के लिए अपनी तरफ से सिर्फ 50,000 रुपये ही दें, ये किसी मजाक से कम नहीं है।
ये बात अलग है कि प्रधानमंत्री जी ने इसके पहले लेह दौरे के दौरान इस उजड़े शहर को फिर बसाने के लिए 125 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी, लेकिन 1000 करोड़ और 125 करोड़ में कितना अंतर है, ये तो कोई बिना गणित पढ़ा हुआ भी आसानी से बता सकता है।
तुरंत याद आईं बद्रीनाथ-केदारनाथ से लेकर उटी और रोहतांग जैसे पहाडी स्थानों की अपनी वो यात्राएं, और वहां के लोगों की दुरूह जिंदगी। ऐसी जगहें, जहां पानी की एक साधारण बोतल की कीमत भी मैदानी जगह से चार गुनी ज्यादा हो जाती है, वहां पूरा का पूरा शहर दोबारा बसाने के लिए सिर्फ 125 करोड़ और प्रधानमंत्री जी जैसे ’दिलदार’ नेताओं की तरफ से कुल मिला कर 2-4 लाख रुपये और, जिसमें हमारी माननीय राष्ट्पति जी की ओर से दिए 1,00,000 रुपये भी शामिल हैं। लगा क्या एक पूरे शहर को दोबारा बसाने की सिर्फ इतनी ही कीमत लगी है। और प्रधानमंत्री जी ने अपनी तरफ से दिए भी तो सिर्फ 50,000 रुपए, जितने से हमारे देश के माननीय सांसद भी संतुश्ट नहीं हुए, जबकि ये तो उनकी बेसिक इनकम ही निर्धारित हो रही थी। दूसरे भत्ते अलग।
अचानक याद आया प्रधानमंत्री जी का एक संवाददाता सम्मेलन, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के किसी भी हिस्से में अगर कुछ गड़बड़ होती है, तो उन्हें नींद नहीं आती, पर लगता है कि लेह की प्राकृतिक आपदा के बाद प्रधानमंत्री जी के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है, तभी तो पाकिस्तान जैसे देश को भी आपदा के समय लगभग 117 करोड़ रुपये देने का फैसला करने वाले देश के प्रधानमंत्री में इतनी संवेदनहीनता नहीं दिखती।
दिल में आया, उन तक अपनी बात पहुंचाउं, दुनिया के सबसे उंचे शहरों में से एक शहर की मौत हुई है प्रधानमंत्री जी, कुछ तो सोचिए।
Didi is age me itna mature kaise likh leti ho
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