Sunday, September 12, 2010

इस शोर में कहाँ खो गयी शांति...

कल 11 सितंबर था। सारे अखबार और टीवी चैनलों के लिए सुकून का दिन। हो भी क्यों ना, आधे दिन तो 09/11 से जुड़ी खबरें ही दिखानी थी। अखबारों के पन्ने भरने में भी अखबारनवीसों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी होगी क्योंकि दुनिया भर के स्तंभकारों ने भारी-भरकम शब्दों से उनकी परेशानी को हल कर दिया होगा।

कल कई अखबार और चैनल देखे, कहीं कुरान जलाने का प्रॉपोगेंडा तो कहीं अफगानिस्तान युद्ध के फायदे-नुकसानों का विश्लेषण। पूरे दिन बस एक ही राग, अलग-अलग चैनलों पर एक जैसी हैडिंग, जैसे, एक ऐसा हमला, जिसने बदल दी दुनिया या क्या अमेरिका को मिल पाएगा ओसामा बिन लादेन, वगैरह-वगैरह। चैनलों ने तो मानो 9/11 को एक ’राष्ट्ीय बरसी’ के रूप में ही मनाने की ठान ली थी।
कई सारे अखबार टटोल डाले और कई बार टीवी देखा, पर एक खबर जिस पर मेरी निगाह लगी हुई थी, वो कहीं नहीं दिखी। ये खबर भी 9/11 से जुड़ी थी, लेकिन ये 9/11 भारत से जुड़ा था, इसीलिए शायद वो कहीं नहीं दिखी। ये 9/11 था, 1893 का, जिस दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के फुलर्टन हॉल में वर्ल्ड पार्लियामेंट ऑफ रिलीजियंस में दुनिया के नेताओं को ’ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका’ के रूप में संबोधित करके दुनिया को शांति और भाईचारे का संदेश दिया था।

लेकिन अफसोस, किसी भी चैनल या अखबार में मुझे इस संबंध में एक छोटी सी खबर या टुकड़ा भी नहीं दिखाई दिया, न ही अपनी छोटी-मोटी बातों को फेसबुक पर पोस्ट करने वाले हमारे पत्रकार साथियों ने इस खबर से जुड़ी कोई बात यहां शेयर की।

देख कर लगा, शायद आतंकवाद के इस शोर में शांति पूरी तरह दब गई है। साथ ही मन में ये भी आया कि इस तरह पूरे-पूरे पन्ने आतंकवाद से जुड़ी खबरों से भर के या चैनलों पर दुनिया भर में फैले आतंकवाद के बारे में नमक मिर्च लगाकर कार्यक्रम दिखाने और देखने से क्या हम एक तरह से आतंकवादियों के मंसूबे पूरे नहीं कर रहे हैं?

इस सवाल का जवाब तो मुझे नहीं मिला, लेकिन तभी ख्याल आया, हमारे देश को आतंकवाद से मिले जख्मों का यानी 26/11 का। अब इंतजार है, मुझे भारत के ललाट पर लगे इस जख्म की बरसी का, जिस दिन मैं अमेरिका के अखबारों में देख सकूं कि हमारे देश को लगे आतंकवाद के दंश का शोर वहां भी सुनाई देता है या नहीं।

6 comments:

  1. "शायद आतंकवाद के इस शोर में शांति पूरी तरह दब गई है"
    दबाया जा रहा है , एक ही मुहिम है कैसे हर तरह से इंसान का जीना बेहाल किया जाए ।

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  2. शायद आतंकवाद के इस शोर में शांति पूरी तरह दब गई है|

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  3. अच्छा लिखती हैं आप . लिखते रहिये , दुसरे ब्लॉग भी देखें

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  4. garima.....kisi ko kisi kaa shor sunaayi nahin deta....sab apne-apne shor kee aavaaz se pareshaan hain....aur amerika to kyaa koi bhee is sthiti se alhadaa nahin hai.....

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  5. "ये 9/11 था, 1893 का, जिस दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के फुलर्टन हॉल में वर्ल्ड पार्लियामेंट ऑफ रिलीजियंस में दुनिया के नेताओं को ’ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका’ के रूप में संबोधित करके दुनिया को शांति और भाईचारे का संदेश दिया था।"

    भीड़ से हटकर अलग सोच ही सृजन कहलाती है - सच्ची और बहुत अच्छी सोच.

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