Saturday, August 7, 2010

अच्छी ज़िन्दगी दे दी, अच्छा जीवन देना भूल गए...

17-18 साल के उस लड़के को देख कर ही अंदाजा हो रहा था कि वो किसीसभ्यपरिवार से ताल्लुक रखता है। रीबॉक के जूते, एकदम डिजाइनर फंकी लुक वाला आउटफिट और हाथों में नोकिया सीरिज का मोबाइल। कुल मिलाकर वो सब कुछ, जो दिल्ली में मां-बाप अपने बच्चों को आलीषान जिंदगी जीने के लिए अमूमन देते हैं। दिल्ली में ऐसे सभ्य लड़के-लड़कियां अक्सर दिखते हैं, जो आम तौर पर अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहते हैं।

राजीव चौक पर मेट्ो के गेट खुलते ही भीड़ को चीरता हुआ वो लड़का आया और मुझसे दो सीट छोड़ कर बैठ गया। मेट्ो में भीड़ इतनी थी कि मैं समझ गई थी कि आज तो कश्मीरी गेट तक का सफर पूरासफरही बनने वाला है। इस बीच कहीं से भीड़ के बीच 65-66 साल की एक आंटी आईं और उस लड़के से बोलीं कि बेटा प्लीज मुझे सीट दे दो। मुझे जीटीबी नगर तक जाना है और इतनी भीड़ में मैं खड़ी नहीं हो पाउंगी। आंटी की बात सुन कर जाने उस लड़के को क्या हुआ और वो तपाक से बोला, आंटी ये लेडीज सीट थोड़े ही है, जो मैं आपके लिए खड़ा हो जाउं और आप मजे से बैठ जाएं।

इस पर आंटी बोलीं, बेटा तू तो बच्चा है, भीड़ में खड़ा भी हो जाएगा, पर मुझे तो एक धक्का लगेगा और मैं गिर पड़ूगीं। आंटी के ऐसा कहने पर लड़का जाने क्या सोच कर खड़ा हो गया और आंटी उस जगह बैठ गईं। पर तक तब मेट्ो की ऐसी हालत हो गई थी कि कोई टस से मस भी नहीं हो पा रहा था।

एक मिनट बाद नई दिल्ली आया और मेट्ो की हालत और बुरी हो गई। भीड़ के कारण दरवाजे बंद नहीं हो रहे थे और उस लड़के को भी थोड़ा और सिकुड़ना पड़ गया था। भीड़ बढ़ रही थी और साथ में लड़के का गुस्सा भी। अचानक उसका फोन बजा और उसने फोन करने वाले से गुस्से मंे कहा, ’साले, मैं मेट्ो में हूं अभी, बाद में फोन करता हूं।

सामने वाले ने उससे कुछ पूछा, जिसके जवाब में उसने कहामेरे डैड को भी आज ही मेरी गाड़ी ले जानी थी, उनकी खुद की गाड़ी तो खराब पड़ी है, झट से मेरी ले गए, इसलिए मेट्ो से जा रहा हूं।

फोन रखने के बाद भी लड़के का गुस्सा कम नहीं हुआ और उसने आंटी को घूरते हुए उनसे कहा कि एक तो मैंने भाग कर सीट ली और आप उस पर जम गईं। टोकन के पैसे तो मैंने भी दिए हैं। आंटी बोलीं, बेटा बुजुर्ग हूं, इसलिए बैठना जरूरी था। दोनों के बीच बहस होते देखकर पास खड़े 45-46 साल के एक सज्जन लड़के से बोले, बेटा एक तो ये महिला हैं और दूसरे बुजुर्ग हैं, तू खड़ा हो भी गया, तो क्या है। इतना फर्ज तो हमारा भी बनता है।

अंकल के बीच में कूदने से लड़के का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उसने तेज आवाज में आंटी को सुनायाबुड्ढ़ी हैं, तो अपने घर में बैठें, घूमने की क्या पड़ी है।लड़के की बदतमजी देख कर कोई कुछ बोलता, इसके पहले ही चांदनी चौक आया और वो उतर गया। आंटी भी मन मसोस कर रह गईं, उनकी भी जाने क्या मजबूरी रही होगी, जो इतनी भीड़ वाली मेट्ो में अकेली सफर कर रहीं थीं। अगले स्टेशन पर मुझे भी मेट्ो चेंज करनी थी और मैं उन आंटी और उस लड़के की सूरत को याद करते-करते रिठाला वाली मेट्ो लेने के लिए उतर गई।

उपर आई, तो देखा कि रिठाला वाली मेट्ो की हालत भी बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी, खैर कैसे-जैसे चढ़ गई, बुजुर्गों और विकलांगों वाली सीट के पास थोड़ी जगह थी, जहां जाकर खड़ी हो गई। देखा तो उस सीट पर दो अंकल बैठे थे, जिनकी उम्र यही कोई 60 के आसपास रही होगी। एडजस्ट होते-होते तीस हजारी गया, जहां उसी गेट से एक अंकल-आंटी चढ़े। दोनों की उम्र कम से कम 70 से 75 के बीच थी और दोनों स्टिक लिए हुए थे। देख कर एक बार लगा कि क्या इन्हें ले जाने वाला कोई नहीं था, जो इन्हें मेट्ो में ऐसे अकेले आना पड़ा। मेट्ो से सफर करने वाले इस बात को भली-भांति जानते हैं कि उसके गेट सिर्फ कुछ सेकंड के लिए खुलते हैं और भीड़ ऐसी होती है, कि तौबा....

खैर अंकल-आंटी चढ़ गए और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। उन्हें देख कर भी कोई अपनी जगह से नहीं हिला, क्योंकि सब अपनी दुनिया में व्यस्त थे। किसी से कुछ कहने का फायदा इसलिए नहीं लगा क्योंकि मैं नीचे वाली घटना को भूल नहीं पा रही थी। तभी बुजुर्गों की सीट पर बैठे दोनों अंकलों का का ध्यान मैंने उस ओर दिलाया, जिसके बाद वो खड़े हो गए।

आंटी को मैंने हाथ पकड़ कर उस जगह लाकर बैठाया और बदले में उन्होंने मुझेजींदी रह पुत्तरका आर्शीवाद दे डाला। आंटी से बोला नहीं जा रहा था, पर चेहरे से संतुष्टि दिख रही थी। तभी अचानक उनके चेहरे में मुझे वो नीचे वाली मेट्ो वाली आंटी और उस लड़के का चेहरा दिखने लगा। उस लड़के का वाक्य मेरे कानों में गूंजा, और मेरे मन में उसके मां-बाप का ख्याल गया। मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि अपने बेटे को सारी सुख-सुविधाओं से भरी अच्छी जिंदगी देने वाले मां-बाप संभवतः उसे अच्छा जीवन जीने की सीख देना भूल गए, नहीं तो उसके मुंह से आंटी के लिए ऐसेफूलनहीं झरते।

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