Monday, July 12, 2010

बेटी ही तो है मार डालो.

कन्या भू्रण हत्या, दहेज हत्या, बाल विवाह रूपी हत्या और अब ऑनर बनाम हॉरर किलिंग, हमेद्गाा से लड़कियों के दुनिया में आने के विरोधी रहे समाज के एक तबके को एक बार फिर लड कियों को मारने का एक और बहाना मिल गया है और इस बात में कोई आद्गचर्य नहीं कि अपने अस्तित्व के लिए लड रही लड की की सांसों की डोर को अब उसकी ही मां, भाई, बाप या दूसरे रिद्गतेदार तोड रहे हैं।

कुछ दिन पहले दिल्ली की एक तथाकथित समाजसेविका से मिलना हुआ। मैडम से मैंने पूछा कि जो बेचारी लड कियां अपना जीवनसाथी चुनने की जिद में अंजाने में ही अपनी मौत चुन रही हैं, उन्हें न्याय दिलाने के बारे में महिला संगठन क्या कर रहे हैं, उनका जवाब हैरान कर देने वाला था। मैडम ने सबसे पहले तो मुझसे पूछा कि आप कहां की रहने वाली हैं, अचानक मुझे लगा कि मेरे सवाल के जवाब में ये मुझसे ऐसा अटपटा सवाल क्यों पूछ रही हैं, इस पर भी मैंने उनसे कहा कि मूलतः मैं राजस्थानी हूं, लेकिन परिवार मध्यप्रदेद्गा के भोपाल में रहता है।

मैडम को द्याायद इतने से संतुच्च्िट नहीं हुई और उन्होंने दूसरा सवाल दागा कि अगर आप अपनी मर्जी से द्याादी करने के फैसले के बारे में अपने परिवार को बताएं तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी, इस पर मैंने कहा कि उनकी प्रतिक्रिया जो भी हो, आप मुझे मेरे सवाल के बारे में तो जवाब दें ताकि मैं रवानगी डाल सकूं। इस पर उन्होंने धीरे से कहा कि मैडम आप बुरा मत मानिएगा, लेकिन ये सच है कि जो लड़की घर से भाग कर द्याादी कर ले, जो सालों मां-बाप के घर में पल कर उनकी सगी हो और किसी अंजान लड के की काम वासना में अंधी होकर अपने परिवार की इज्जत को धूल में मिला दे, ऐसी लड की को तो मार डालना ही बेहतर होगा। अब आप ही बताइए कि जिन मां-बाप ने पाला, कम से कम उनकी इज्जत का तो खयाल होना ही चाहिए ना।

इतना ही नहीं उन्होंने मुझे सलाह भी दे डाली कि मैं जिन प्रदेद्गाों से जुड़ी हुई हूं, वहां की परंपराओं को देखते हुए मुझे भी अपना जीवनसाथी चुनने की भूल नहीं करनी चाहिए, नहीं तो मुझे भी परिणाम भुगतने पड सकते हैं।

उनकी प्रतिक्रिया सुन कर मुझे कोई आद्गचर्य नहीं हुआ, लेकिन पिछले दिनों जब दिल्ली में ऑनर किलिंग के नाम पर लड कियों को मारने के खिलाफ एक विरोध-प्रदर्द्गान में उन्हें देखा तो उन्हें फोन करने से खुद को रोक सकी। मैंने फौरन मैडम को फोन किया और उनसे पूछ बैठी कि मैडम दो दिन में ऐसा क्या हो गया, जो आपको ऑनर किलिंग का विरोध करने की जरूरत आन पड , कहीं आपके परिवार में तो कोई ऐसी-वैसी घटना नहीं हो गई? इस पर उन्होंने जरा तुनकते हुए फौरन कहा कि हमारे परिवार की लड कियां संस्कारी हैं और ऐसा-वैसा कोई कदम नहीं उठाएगीं, लेकिन आज सभी महिला संगठनों को विरोध करना था और इसलिए हम भी उसमें चले गए।

मैंने भी सोच लिया कि आज तो इनके सामने बेद्गार्म बन ही जाओ, मैंने उनसे कहा कि मैडम उस दिन आप कह रही थीं कि जो लड़की मां-बाप की इज्जत का खयाल करे, तो उसे तो मार ही देना ठीक है, बस मेरे एक और सवाल का जवाब दे दीजिए कि कल को अगर आपका बेटा कहीं चोरी-डकैती या किसी लड की से छेड खानी या किसी के साथ भागने का अपराध कर बैठता है तो क्या उसे भी मार देना ही ठीक होगा।

इतना सुनते ही मैडम बुरी तरह भड गईं और कहने लगी कि मैडम आप भले ही दिल्ली में पत्रकार बन गई हो, लेकिन फिर भी आपके मां-बाप के लिए भी आपका भाई ही ज्यादा अहमियत रखता होगा क्योंकि बेटे का किया कोई भी काम मां-बाप के लिए उतना कच्च्टप्रद और असम्मानजनक नहीं होता, जितना बेटी का एक गलत कदम।

मैडम के तर्क या यूं कहूं कि कुतर्क, सुन कर मुझे लगा कि अब चुप रहना ही ठीक है, लेकिन एक बार दिल में आया कि मैडम की कोई बेटी हो तो उसे जरूर इस बारे में बता दूं, ताकि कल को अगर मैडम की बेटी किसी से द्याादी करने का फैसला करे तो मैडम को ये सोचना पडे कि चलो बेटी ही तो है, मार डालो।

1 comment:

  1. Garimaji,

    आपका ब्लाग अच्छा है। एक अच्छा प्रयास है। अब तो आदत.. और बेटी है तो .. दोनों पढ़े.. आपका दृष्टिकोण जानने का अवसर मिला। इस क्रम को बनाए रखें। इस बहाने हमें दुनिया को सच बताने का, सच समझाने का अवसर मिलता है। Keep it up..

    regards

    Rakesh Gandhi.

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