Thursday, July 29, 2010

बापू के भारत में ऐसे मेहमान का स्वागत


उस एक खबर को हिंदी अखबारों में ज्यादा जगह नहीं मिली, पर अपने आप को बापू का भारत बताने वाले, भारत में उस खबर की अपनी अलग ही अहमियत थी। खबर इसलिए जरूरी थी क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक ऐसे सैन्य प्रमुख का स्वागत हो रहा था, जो दुनिया भर में अपनी तानाद्गााही को लेकर खासा कुखयात है।


भारत में पिछले दिनों म्यामां के जुंटा प्रमुख जनरल थान द्यवे का स्वागत हुआ। यह वही जनरल हैं, जिनसे अमेरिका बान की मून समेत पूरी दुनिया ये कहते-कहते थक गई है कि वे लोकतंत्र और अमन के लिए पिछले १९ साल से संघर्च्च कर रहीं आंग सान सू की को रिहा करके एक नया इतिहास बनाएं, पर जनरल ने तो जैसे दुनिया भर की अपीलों की ओर से कान ही बंद कर रखे हैं।


ये वहीं जनरल हैं, जो म्यामां में लोकतंत्र की बहाली के प्रयासों पर नोबल पुरस्कार जीत चुकीं सू की को छोटी-छोटी बातों पर नजरबंदी या जेल में डालने का बहाना ही खोजते रहते हैं। चाहे उनके घर में एक अमेरिकी नागरिक के तैर कर आने का मामला हो या ईंधन की कीमतों में इजाफे को वापस लेने की मांग कर रही जनता का नेतृत्व करने का। लोकतंत्र कायम करने की मांग में अपना जीवन कुर्बान करने वाली सू की की आवाज को दबाने में जनरल ने कोई कसर नहीं छोड़ी।


जनरल ने पिछले दिनों सू की को १८ और महीने के लिए नजरबंदी में कैद कर दिया। इस बार उनके सिर पर आरोप मढ गया अपनी नजरबंदी तोड ने का। सू की की गलती सिर्फ इतनी थी कि उनके घर में एक अमेरिकी नागरिक तैर कर घुस गया, और जिसके घुसके आने के बारे में बेचारी सू की को पता भी नहीं था।


समय-समय पर सू की के बारे में म्यामां सरकार से बात करने का दावा करने वाली भारत सरकार पर सू की की पार्टी को भी अब भरोसा नहीं रह गया है। सू की की नेद्गानल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने भी एक बार कहा था कि उन्हें अपनी नेता की रिहाई के बारे में भारत से कोई उम्मीद नहीं है।


सू की की पार्टी पर पिछले दिनों जब आगामी चुनाव के लिए जुंटा सरकार ने प्रतिबंध लगाया तब भी भारत ने उच्च स्तर पर कोई आपत्ति नहीं उठाई, और अब जुंटा प्रमुख का स्वागत करके भारत ने लोकतंत्र में अपने समर्थन की मंद्गाा पर संदेह पैदा किया है।


भारत में रह रहे म्यामां के लोगों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने जनरल की यात्रा का पुरजोर विरोध किया, म्यामां के लोगों ने दिल्ली में केवल जनरल, बल्कि भारत सरकार के खिलाफ भी नारे लगाए, लेकिन गौर करने वाली बात ये थी कि लोकतंत्र का झंडा उठा कर फिरने वाली विपक्ष की किसी पार्टी को इतनी फुरसत नहीं मिली कि वह दुनिया भर में लोकतंत्र का गला घोंटने के लिए पहचाने जाने वाले जनरल थान के आगमन पर सरकार के सामने विरोध दर्ज कराती। करतीं भी कैसे, सू की के नाम पर किसी राजनीतिक पार्टी को वोट थोड़े मिलने थे। कारण चाहे कुछ भी हो, पर जनरल का स्वागत करके भारत ने 'लोकतंत्र के झंडाबरदर' की अपनी छवि को थोड धूमिल तो कर ही लिया है।

No comments:

Post a Comment