Monday, July 19, 2010

सारी दुनिया उनकी सुनती है, पर पता नहीं वो किसकी सुनते हैं?

हमारे काबिल प्रधानमंत्रीजी की द्याान में एक और तमगा जुड़ गया, और जुड भी क्यों , आखिरकार दुनिया भर के दादा अमेरिका ने उनकी तारीफ करते हुए भारत से कहा है कि जब आपके प्रधानमंत्री बोलते हैं, तो सारी दुनिया सुनती है, लेकिन जिस दिन से बराक ओबामा के मुंह से प्रधानमंत्रीजी की तारीफ में कही ये बात सुनी है, उसी दिन से एक सवाल मन में कौंध रहा है कि सारी दुनिया हमारे प्रधानमंत्रीजी की बातें सुनती हैं, पर पता नहीं वो किसकी बात सुनते हैं।

एक साल से जबसे उनकी सरकार बनी, तब से कहीं-कहीं से आवाजें रहीं थीं कि महंगाई बढ रही है, पर उन्हें सुनाई नहीं दे रहा था। खैर उनके कान खराब हो गए थे, तो जनता ने भी कमर कस ही ली थी। पांच जुलाई को पिल ही पड पूरी जनता और कर डाला पूरा भारत बंद। हमारे प्रधानमंत्रीजी को भी द्याायद अपना बहरापन थोड कम करने के लिए ऐसी ही किसी दवाई की जरूरत थी। दवाई ने नामालूम सा असर किया और दो-चार राज्यों में डीजल के दाम कम करवा के उन्होंने अपने आप को विजेता समझने वाली जनता के घावों पर थोड मरहम लगाने का प्रयास किया हालांकि जनता को भी ये बताने की जरूरत नहीं है कि डीजल पर वैट कम करने से जरूरत की चीजों पर कितना असर पड ने वाला है।

जितने समय प्रधानमंत्रीजी दुनिया को अपनी उपलब्धियों की गिनती सुनाने में व्यस्त थे, उतने समय में सैकड़ों किसानों ने गरीबी के कारण आत्महत्या करके प्रयास किया कि सरकार को अपनी खराब हालत की कहानी सुना दें, लेकिन उन बेचारों को ये पता नहीं था कि नेताजी के बहरेपन का इलाज वो अपनी जान देकर भी नहीं कर पाएंगे।

सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने में किसान तो सफल हो नहीं सके, अब नक्सली खुद को ज्यादा स्मार्ट समझ रहे हैं। नक्सली सोच रहे हैं कि लोगों और जवानों को अंधाधुंध मार के वो सबको डरा देंगे और २०५० तक भारत में अपना राज चलाने का उनका सपना पूरा हो जाएगा, पर नक्सलियों को द्याायद अब तक ये बात समझ नहीं आई है कि आदिवासी इलाकों में जिन लोगों को वो मार रहे हैं, उन्हें मारने से सरकार को कोई फर्क ही नहीं पड रहा है। अभी तो सरकार के लोग एक-दूसरे पर आरोप लगाने में ही व्यस्त हैं। नक्सली छोटी-मोटी आम जनता और जवानों को छोड कर एक बार सीधे कोई हाईप्रोफाइल वार करगें, तो ही द्याायद प्रधानमंत्रीजी के कान में सरसों का तेल डलेगा। नहीं तो नीरो की बंसी तो पूरी दुनिया सुन ही रही है, भले ही रोम जल कर खाक हो जाए।

ये सारे तो खैर फिर भी अंदरुनी मामले थे, लेकिन अब तो नेताजी दुनिया को सुनाने के फेर में भारत के आत्मसम्मान के साथ भी खिलवाड़ करने पर उतारु हो गए हैं। खुफिया एजेंसियों ने चीख-चीख कर कहा कि घाटी में पिछले एक महीने से जो कुछ भी हो रहा है, वो पूरा पर्दे के पीछे से लद्गकर और अंततः पाकिस्तान का खेल है, पर सरकार तो कुछ सुनने के लिए तैयार ही नहीं थी। इसके बाद भी भेज दिया एस एम कृच्च्णाजी को पाकिस्तान। और प्रधानमंत्रीजी के बहरेपन की बीमारी इस बार द्याायद हमारे फॉरेन मिनिस्टर को भी लग गई है। पाकिस्तान के एक मंत्रीजी खुले आम कृच्च्णाजी के सामने ही हमारे एक काबिल अधिकारी की दुनिया के मोस्ट वांटेड आतंकवादियों में से एक हाफिज सईद के साथ तुलना करते रहे, पर हमारे मंत्रीजी भी 'कुछ सुनो' की तर्ज पर बहरे बने रहे और मुंह सिल लिया।

जो हुआ, वो तो हो गया, पर इससे पहले कि अब हमारे प्रधानमंत्रीजी पाकिस्तान के साथ वार्ता को लेकर दुनिया के सामने एक बार फिर बोलें कि 'भारत की ओर से तो वार्ता जारी रहेगी ही', कोई जरा उन्हें जाकर एक बार ये कहावत सुना दे कि कुत्ते की पूंछ को सालों बोतल में रखो तो भी वो सीधी नहीं होती, इसलिए उसे सीधा करने का प्रयास व्यर्थ है, हालांकि उनके कान में ये कहावत सुनाने का भी कोई फायदा नहीं है क्योंकि उन्हें अमेरिका को तो सुनाना ही पड ेगा कि हमने अपनी तरफ से तो वार्ता जारी रखी ही हुई है।

पर सवाल फिर भी अपनी जगह कायम है कि आखिर वो सुनते किसकी हैं, आपको पता चले तो प्लीज मुझे भी बताइएगा।

1 comment:

  1. फिलहाल कोई नहीं जानता कि वे सुनते किसकी है। तलाश जारी है।
    अच्छा लिखा। समसामयिक मामलों पर आपकी अच्छी पकड़ है। इसे जारी रखना चाहिए।

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