Thursday, July 15, 2010

अब तो आदत सी है हमको ऐसे जीने की...

कुछ दिन पहले एक गाना आया था अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने की, ये गाना हम पर या यूं कहूं कि हमारे देद्गा पर बिल्कुल फिट बैठता है। देद्गा की आदत हो गई है कुछ ऐसे, यानी गुलामी में जीने की। पहले मुगलों की गुलामी की, फिर अंग्रेजों की और अब दुनिया में दादागिरी चलाने वाले एक देद्गा की।

इस बार मेरा भारत महान कर रहा है, अमेरिका की गुलामी, मेरी बात बुरी लग रही हो तो जरा पिछले दिनों के घटनाक्रम को एक बार फिर से देखिए।

भोपाल गैस त्रासदी के जिम्मेदार वॉरेन एंडरसन को हमने घर की बेटी की तरह ससम्मान विदा किया और जाते-जाते वो हमें ही एक तरह से चमका गया कि अमेरिका का अपना अलग कानून है, मानो कह रहा हो कि जाओ भारत के लोगों, जो करना है वो कर लो, मुझ पर तो मेरे देद्गा का हाथ है। वहीं अमेरिका ने अपने देद्गा में तेल रिसने के लिए जिम्मेदार कंपनी ब्रिटिद्गा पेटेलियम के अधिकारियों को पर्दे के पीछे से ऐसा धमकाया कि ओबामा के साथ मुलाकात के पहले ही कंपनी के अधिकारियों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं, जिन्हें सारी दुनिया ने देखा। हमने भी देखा, चुपचाप, आखिर हम गुलाम जो ठहरे।

अमेरिका ने तेल के रिसाव के बाद आदमियों की तो क्या अपनी मरी हुई मछलियों की कीमत भी बीपी से वसूली। बीपी के लिए ये भरपाई क्या कम थी, जो अब ओबामा का पूरा लाव-लद्गकर लॉकरबी मामले को लेकर कंपनी के पीछे पड़ गया है। अमेरिका के चार सीनेटरों ने बीपी के खिलाफ पूरा मोर्चा खोल दिया है और रोज लॉकरबी साजिद्गा के जिम्मेदार अब्देल बासेत अल-मेग्राही से कंपनी के संबंधों को लेकर कोई कोई नया द्गिागूफा छोड रहे हैं। ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नहीं, जब थोड से तेल रिसाव के अपराध के बदले बीपी पटरियों पर जाएगी। और हम, जरा एक बार एंडरसन को मांग कर तो देखें, हिलेरी से लेकर हॉलब्रुक तक, सब ऐसे गुर्राने लगेंगे, कि हमारे सरदारजी को लगेगा कि इससे तो अच्छा भगवान से ही कुछ मांग लेते। वैसे भी अब एंडरसन को मांगने का कोई फायदा तो है नहीं, अमेरिका ने तो फैसला आने के अगले ही दिन पूरी दुनिया में डंका पीट दिया था कि एंडरसन पर तो दोबारा मामला चलेगा और ही उसका प्रत्यर्पण किया जाएगा क्योंकि उसके खिलाफ भारत के पास पर्याप्त सबूत ही नहीं हैं।

अब बात करते हैं डेविड कोलमन हेडली की, वही हेडली, जिसने खुले आम स्वीकार किया कि उस ने मुंबई में सैकड़ों लोगों को मारने की साजिद्गा में लद्गकर का पूरा साथ दिया। हेडली अमेरिका की पनाह में रहकर भारत में आतंक फैलाने की योजनाओं के एक के बाद एक राज खोलता रहा और हम अमेरिका दादा के सामने रिरियाते रहे कि एक बार तो हमें भी उससे पूछताछ कर लेने दो। आखिरकार अंकल सैम को तरस ही गया और उसने एहसान दिखाते हुए हमसे कहा कि चलिए आपके अधिकारियों को उससे पूछताछ की इजाजत दे दी, लेकिन साथ में ये हिदायत देना नहीं भूला कि कर लो हेडली से पूछताछ, लेकिन अकेले में नहीं, हमारे अधिकारी भी उस दौरान वहां मौजूद रहेंगे। गोया, हम आतंकवादी हुए और हेडली हमारा द्गिाकार, जिसे मौका मिलते ही हम वैसे ही पीस डालेंगे, जैसे उसके गुर्गों ने २००८ में हमारे सैकड ों लोगों को पीस डाला था। और अब, जब हेडली दादा की द्यारण में रहते हुए कुछ खास बोला ही नहीं, तो अमेरिका का एक-एक अधिकारी बार-बार ये कहता फिर रहा है कि अभी तो जांच चल रही है, इस लिहाज से अभी तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता, मानो हमसे कह रहा हो कि क्यों बार-बार भीख मांगते हो, जानते नहीं हो क्या, कि हेडली के संबंध पाकिस्तान से हैं और पाकिस्तान के सिर पर तो मैंने आद्गर्ाीवादों के पूरे कटोरे ही उड ेले हुए हैं।

पर कोई बात नहीं, हमें तो आदत ही है ऐसे जीने की, दादा की दादागिरी तो हमें झेलनी ही है। वो अगर ये भी कहेगा कि आज से आपके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं, ओसामा बिन लादेन है, तो भी हमें तो स्वीकार करना ही पड़ेगा। आखिर हम उसके गुलाम जो ठहरे।

1 comment:

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